क्या ब्रिक्स के लिए छटपटा रहे तुर्की की राह चीन ने मुस्लिमों की वजह से रोकी, भारत ने पाकिस्तान के चलते दिया साथ?

नई दिल्ली: करीब 2500 साल पहले एक सिल्क रोड की शुरुआत हुई, जो भूमध्य सागर से लेकर पूर्वी एशिया को जोड़ता था। इस दौरान ज्यादातर व्यापारी मुस्लिम थे और पूर्व की ओर चले गए। ये व्यापारी अपने साथ कारोबारी वस्तुएं तो लेकर आए ही, अपने साथ अपनी संस्कृति

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नई दिल्ली: करीब 2500 साल पहले एक सिल्क रोड की शुरुआत हुई, जो भूमध्य सागर से लेकर पूर्वी एशिया को जोड़ता था। इस दौरान ज्यादातर व्यापारी मुस्लिम थे और पूर्व की ओर चले गए। ये व्यापारी अपने साथ कारोबारी वस्तुएं तो लेकर आए ही, अपने साथ अपनी संस्कृति और मान्यताएं भी पूर्वी एशिया में ले गए। माना जाता है कि इस्लाम उन कई धर्मों में से एक था जो 7वीं से 10वीं शताब्दी के दौरान युद्ध, व्यापार और राजनयिक आदान-प्रदान के माध्यम से धीरे-धीरे सिल्क रोड के आसपास के देशों में फैलना शुरू हुआ।
चीन में भी इस्लाम का आगमन तब हुआ, जब तांग और सोंग राजवंशों का शासन था। इस्लाम पहली बार चीन में 616-18 ईसवी में साद इब्न अबी वक्कास, वहाब इब्न अबू कबचा और कई दूसरे मुस्लिम यात्रियों के जरिए पहुंचा। कई विवरणों में जिक्र है कि वहाब अबू कबचा 629 ईसवी में समुद्र के रास्ते कैंटन पहुंचे। अब चीन में मुस्लिमों की इतनी आबादी है कि वह इन्हें अपने लिए खतरा मानता है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से चीन ने ब्रिक्स देशों में शामिल होने की तुर्की इच्छा पर पानी फेर दिया। इसे समझते हैं।

चीन में मुस्लिम आबादी कितनी, उइघुरों पर सख्ती

दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि चीन में करीब 2.5 करोड़ मुसलमान हैं, जो कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत से भी कम हैं। इनमें हुई मुस्लिम सबसे अधिक संख्या में हैं। मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या उत्तर-पश्चिमी चीन के शिंझियांग स्वायत्त क्षेत्र में रहती है। इनमें बड़ी आबादी उइघुर मुस्लिमों की है। निंग्जिया, गांसु और किंघई के क्षेत्रों में भी मुस्लिम आबादी है, मगर कम संख्या में है। चीन के 55 आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक लोगों में से 10 समूह मुख्य रूप से सुन्नी मुस्लिम हैं। कम्युनिस्ट देश होने के नाते चीन में सार्वजनिक जगहों, ऑफिस वगैरह पर नमाज पढ़ने की आबादी है। उइघुर मुस्लिमों के खिलाफ जमकर सख्ती की जाती है।
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उइघुर मुस्लिम खुद को तुर्की के करीब मानते हैं

चीन के शिंजियांग प्रांत में करीब 1.2 करोड़ उइघुर मुसलमान रहते हैं। ये अपनी भाषा बोलते हैं, जो तुर्की से मिलती-जुलती है। ये खुद को सांस्कृतिक और जातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं। उइघुर शिंजियांग की आबादी के आधे से भी कम हैं। हाल के दशकों में बहुसंख्यक जातीय समूह हान लोगों का शिनजियांग में बड़े पैमाने पर पलायन देखा गया है, जो कथित तौर पर वहां की अल्पसंख्यक आबादी को कमजोर करने के लिए किया गया था। चीन पर मुस्लिम धार्मिक हस्तियों को निशाना बनाने , क्षेत्र में धार्मिक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने तथा मस्जिदों और कब्रों को नष्ट करने का भी आरोप लगाया गया है।
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कहां से शुरू हुई बहस, भारत पर क्यों लग रहा आरोप

दरअसल, इस बहस की शुरुआत तब हुई, जब जर्मन प्रकाशक बिल्ज ने यह खबर चला दी थी कि तुर्की को ब्रिक्स में शामिल होने से भारत ने रोक दिया। हकीकत यह है कि तुर्की नाटो का सदस्य है और उसने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है। चीन पाकिस्तान को भी शामिल करना चाहता है। पाकिस्तान और चीन में सैन्य सहयोग के साथ रणनीतिक साझेदारी भी है। इसके बावजूद पाकिस्तान भयानक आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
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पाकिस्तान को भी ब्रिक्स में शामिल होने पर रोक

हाल ही में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के समापन भाषण में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सभी फैसले सर्वसम्मति से होने चाहिए और ब्रिक्स के संस्थापक सदस्यों का सम्मान होना चाहिए। इस टिप्पणी को पाकिस्तान को ब्रिक्स की सदस्यता नहीं मिलने से जोड़कर देखा गया। यह खबर आई कि रूस और चीन के चाहने के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल होने से रोक दिया। हालांकि, भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने कहा कि पाकिस्तान को ब्रिक्स में पार्टनर देश का भी दर्जा नहीं मिला। पाकिस्तान होमवर्क ठीक से नहीं किया।

उइघुर मुस्लिमों पर सख्ती की आलोचना तुर्की को पड़ी महंगी

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, तुर्की को रोकने में भारत के अलावा चीन का भी नाम लिया जा रहा है। रूस के एक विश्लेषक करीम हास ने कहा कि चीन को उइघुर मुसलमानों पर तुर्की के रुख को लेकर नाराजगी है। तुर्की अक्सर उइघुर मुस्लिमों के खिलाफ अत्याचार को लेकर चीन की आलोचना करता रहता है, जिस पर चीन ऐतराज जताता रहा है। कहा जाता है कि पाकिस्तान के कश्मीर राग को लेकर तुर्की उसका साथ देता रहा है, जिस वजह से भारत को भी तुर्की के ब्रिक्स में आने पर ऐतराज है।
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तुर्की को ब्रिक्स की सदस्यता नहीं मिलने के पीछे ये 5 बड़ी वजहें

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, तुर्की को ब्रिक्स की सदस्यता नहीं मिलने के पीछे 5 अहम वजह हैं। पहला यह है कि तुर्की एक तो नाटो का सदस्य देश है। दूसरा यह कि तुर्की को लेकर अभी सदस्य देशों के बीच आम सहमति नहीं है। तीसरा ब्रिक्स अभी चार नए सदस्यों- ईरान, यूएई, इथियोपिया और मिस्र को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। इन्हें इसी साल ब्रिक्स की पूर्णकालिक सदस्यता मिली थी। चौथी वजह यह है कि चीन उइघुर मुसलमानों पर तुर्की की निंदा से परेशान रहता है। वहीं, पांचवीं वजह यह है कि चीन तुर्की की अर्थव्यवस्था को लेकर भी अपना अलग नजरिया रखता है। चीन को लगता है कि तुर्की ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक के लिए बोझ साबित होगा।

आर्मीनिया-अजरबेजान जंग भी एक अहम वजह

आर्मीनिया और अजरबैजान की लड़ाई में तुर्की और भारत दोनों दो छोर पर हैं। भारत जहां आर्मीनिया को हथियार दे रहा है। वहीं, तुर्की तेल उत्पादक अजरबेजान के साथ खड़ा है। माना जा रहा है कि तुर्की की ब्रिक्स की राह में यह भी एक वजह हो सकती है।
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रूस के साथ भी पंगा ले चुका है तुर्की

तुर्की जी-7 और यूरोपीय यूनियन के साथ रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल है। ऐसे में तुर्की का पंगा रूस के साथ बढ़ चुका है। उसका रूस के साथ द्विपक्षीय व्यापार बढ़ नहीं रहा है। 2022 में तुर्की और रूस का द्विपक्षीय व्यापार 68.70 अरब डॉलर था जो 2023 में घटकर 55.4 अरब डॉलर रह गया। तुर्की ने अमेरिकी सैन्य तकनीक रूस को निर्यात करने पर रोक लगा दी है। सबसे बड़ी बात कि तुर्की यूक्रेन को सैन्य हथियार दे रहा है, जो व्लादिमीर पुतिन को कतई अच्छा नहीं लग रहा।

तुर्की को यूरोपीय यूनियन में भी नहीं मिली जगह

तुर्की यूरोपीय यूनियन में शामिल होना चाहता था लेकिन उसे जगह नहीं मिली। माना जाता है कि मुस्लिम बहुल देश होने के कारण तुर्की को ईयू में जगह नहीं मिली। ऐसे में तुर्की अपनी पहचान को लेकर जूझता रहा है। तुर्की के एक तरफ यूरोप है और दूसरी तरफ एशिया। तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन भी यह इच्छा जता चुके हैं, जब उन्होंने कहा कि तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने की चाहत को पश्चिम से मुंह मोड़ने के तौर पर नहीं देखना चाहिए।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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